Sunday, April 22, 2007

वाह री शादी

एक मित्र से बात करते हुए इस निष्कर्श पर पहुंचे कि मीडिया में कंटेंट की कमी हो गई है। बीते हफ्ते में तो ये बात साफ हो गई की क्या खबर है और क्या नहीं, इसको लेकर, कम से कम भारतीय मीडिया में तो कई कंफ्यूज़न नहीं है। हालाकि जो समझ मीडिया की है, उस पर शक़ किया जाना ज़रूरी है।

बीते पूरे हफ्ते टीवी और प्रिंट मीडिया किसी न किसी तरह से एक दरवाज़े के अंदर घुसने की कोशिश में लगी रही। ये दरवाज़ा था "जलसा" का। जलसा बॉलीवुड के मशहूर अदाकार, अमिताभ बच्चन का घर है। और ये वो जगह थी जहां पर अमिताभ के बेटे अभिषेक और उनकी प्रियसी, विश्व सुंदरी एश्वर्या राय का विवाह हो रहा था। अमिताभ का एक और घऱ, "प्रतीक्षा" भी शादी की वजह से आकर्षण का केंद्र था। बारात जलसा से प्रतीक्षा जाएगी या प्रतीक्षा से जलसा? कौन कौन शादी में शरीक होगा? किसको नहीं बुलाया गया है? किसको कार्ड पहुंचा है?? किसको नहीं? ये कुछ ऐसे अहम सवाल थे, जिन्होंने कबूतरबाज़ी में उलझे गुजरात के सांसद की खबर को भी दबा रखा था।

बीते एक हफ्ते में टीवी पर क्या देखने को मिला। अगर ध्यान दिया है, तो कई बड़ी-बड़ी विदेशी गाड़ियां, जिसमें, हर बार ये कहा गया, की किसी न किसी वक्त अभिषेक और एश्वर्या बैठे हुए हैं। अब अभिषेक बाहर जा रहे हैं। अब एश्वर्या अंदर आ रही है। अब अमिताभ जी बाहर गए हैं, और अब वो अंदर चले गए। यही सवाल थे, और यही जवाब। और एक चीज़ बीते एक हफ्ते में देखने को मिली। वो थी जलसा का मेन गेट। जिसके बाहर एक बोर्ड पर लिखा था, क्या??? जलसा, और क्या। उस घर का दरवाज़ा कैसा है? दिवारें कैसी हैं? वहां पर कितने गार्ड लगे हैं? इन सब सवालों का जवाब मुझे मिल गया।

मेरा सवाल सिर्फ इतना है, इन सब बातों से मेरा क्या?? एक दर्शक होने के नाते, मुझे क्या मिला?? हां, खबर दिलचस्प है, पर क्या पूरा हफ्ता, सारा दिन ये देखना मेरे लिए ज़रूरी है? चैनलों पर क्या दिखना है, औऱ अखबरों में क्या छपना है, ये बातें तय करने वाले लोगों को क्या इतना भी नहीं सूझा कि ये कुछ ज्यादा हो गया??
दरअसल, ये मीडिया में कंगाली का दौर है। कंटेंट की कमी, तो कभी नहीं होती, लेकिन कमी होती है, नज़रों की, जो ये देख सकें कि फलां खबर दिखाई जानी है, और फलां नहीं। दिन के आखिर में अगर मुझे एक मज़ेदार सी स्टोरी देखने को मिलती, कि अभिषेक और एश्वर्या की शादी में क्या क्या हुआ, तो शायद मुझे भी मज़ा आता, लेकिन सारा दिन, अहम खबरों को दरकिनार करस सिर्फ जलसा के दरवाज़े दिखाते रहना??? ये कहां कि समझदारी है??



क्या ऐसा हो सकता है कि पूरे एक हफ्ते तक, हमारे पास कोई और खबर ही न हो????

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